यादगार दिवस के अवसर से पहले विश्व युद्ध के शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि भेंट
चंडीगढ़ – पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आज रक्षा सेनाओं के राजनीतिकरण के प्रयासों पर दु:ख ज़ाहिर करते हुए कहा कि सशस्त्र सेना सिफऱ् रेजिमेंटल मुखियों को जवाबदेह होती है न कि राजनैतिक नेताओं के इशारों पर काम करना होता है । मुख्यमंत्री ने रक्षा सेनाओं के कामकाज में राजनैतिक दखलअन्दाज़ी की मौजूदा प्रथा का तत्काल अंत करने का न्योता दिया जिससे सेना के अफ़सर और सैनिक अपनी ड्यूटी कुशलतापूर्वक निभा सकें। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कदम देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता के बड़े हितों के लिए ज्यादा अपेक्षित है ।
आज यहाँ पहले विश्व युद्ध के दौरान अपनी जानें कुर्बान करने वाले राष्ट्रमंडल देशों के सशस्त्र सैनिकों को श्रद्धांजलि भेंट करने के लिए करवाए गये यादगारी दिवस के अवसर पर आदरणीय सभा को संबोधित करते हुए कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने यह विचार रखे। इस मौके पर शहीदों की याद में दो मिनट का मौन भी रखा। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने दु:ख जताया कि स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों की रक्षा के लिए इन महान सैनिकों की मिसाली बहादुरी और अमिट जज़्बे को उस हद तक मान्यता नहीं मिल सकी। उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक युद्ध में लगभग 74000 सैनिक शहीद जबकि 67000 जख्मी हुए । मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे बहुत से भारतीयों को स्वतंत्रता संघर्ष में जाने-अनजाने लोगों के बलिदानों संबंधी तो पता था परन्तु पहले विश्व युद्ध में हिस्सा लेने वाले बहादुर सैनिकों की महान बलिदानों को आम तौर पर भुला दिया गया। उन्होंने नौजवानों के मध्य देश की सेना के अमीर इतिहास का बड़े स्तर पर प्रसार करने का न्योता दिया जिससे सशस्त्र सेनाओं के अमीर और शानदार विरासत संबंधी और ज्यादा अवगत करवाया जा सके । नौजवानों को पिछली घटनाओं के अनुकूल बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने स्कूली पाठ्यक्रम में पहले और दूसरे विश्व युद्ध में भारत के योगदान संबंधी विस्तृत अध्याय शामिल करने की वकालत की है। तुर्की की गैलीपोली की हेलेस और तुरकश यादगार के हाल ही के दौरे का जिक्र करते हुए कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि भारत की अपेक्षा वहाँ के नौजवानों में सेना संबंधी जागरूकता के स्तर में बड़ा अंतर है। यहाँ पिछले दिनों कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कॉमनवैल्थ के शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि भेंट की थी । अपनी जानें न्योछावर करने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि भेंट करते हुए कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि यह बहुत दु:खद मौका था परन्तु यह गौरवमयी दिन भी था जब हमारे बहादुर सैनिकों ने अपनी जि़म्मेदारी की राह पर ऐसा किया था। अपनी पुस्तक ऑनर एंड फिडेलटी -इंडियनज़ मिलिट्री कौंट्रीब्यूशन टू दा ग्रेट वॉर 1914 -18 का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि युद्ध शुरू होने के बाद 20 दिनों के अंदर बुलाऐ गए भारतीय सैनिकों ने युद्ध में ब्रिटिश को बड़ी सहायता प्रदान की । मुख्यमंत्री ने अपनी पुस्तक में से पढ़ते हुए बताया कि वर्ष 1914 के अंत तक युद्ध के विभिन्न मोर्चों पर फोर्स को सात हिस्सों भेज दिया था। इनमें दो इंफैंटरी डिवीजनें, आठ इंफैंटरी ब्रिगेडें और तीन इंफैंटरी बटालियनों की एक मिश्रित फोर्स शामिल थी। इसमें दो कवैलरी डिवीजनों, एक कवैलरी ब्रिगेड के अलावा चार फील्ड तोपख़ाना ब्रिगेडें शामिल थी।यह फ्रांस को की गई आम अलॉटमैंट के अलावा थी।इससे पहले चंडीगढ़ में ब्रिटिश हाई कमिश्नर एंडरियू आइर ने विश्व युद्ध में भारत सेना द्वारा निभाई गई भूमिका की सराहना की।उन्होंने दूर-दराज़ के क्षेत्रों में शानदार भूमिका निभाने के लिए भी सेना की प्रशंसा की जिनको अन्य अनेकों मैडलों के अलावा गौरवयी 11 विक्टोरिया क्रास भी सम्मान के तौर पर प्राप्त हुए। उन्होंने कहा कि विश्व की स्वतंत्रता और मुक्ति के लिए इस युद्ध में से भारतीय सेना की पेशवारी वचनबद्धा संजीदगी और समर्पण की झलक है।कैनेडियन कौंस्यूलेट जनरल मीआ येन ने भी भावी पीढ़ीयों के लिए शांति, खुशहाली और लोकतांत्रिक आज़ादी की प्राप्ति के लिए सेना को श्रद्धांजलि भेंट की। उन्होंने कहा कि पहले विश्व युद्ध के बाद शांति और अमन की बहाली ने समूचे विकास को प्रौत्साहन दिया।इस मौके पर मुख्यमंत्री के सीनियर सलाहकार लैफ्टिनैंट जनरल (रिटा.) टी.एस. शेरगिल्ल, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रवीन ठुकराल, सेना के पूर्व प्रमुख वी.पी. मलिक और पश्चिमी कमांड के जी.ओ.सी. लैफ्टिनैंट जनरल सुरिन्दर सिंह उपस्थित थे ।
