अयोध्या भूमि विवाद का हल क्या आपसी सहमति और बातचीत से हो सकता है। इस
बारे में सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुरक्षित रख
लिया। कोर्ट ने कहा कि यह सिर्फ जमीन का विवाद नहीं बल्कि मामला भावनाओं से
जुडा हुआ है।
अयोध्या भूमि विवाद मामले पर बुधवार तो जब सुप्रीम
कोर्ट में सुनवाई हुई तो चर्चा मधयस्थता के मसले पर हुई। तमाम पक्षों को
सुनने के बाद मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने
पक्षकारों की दलीलें सुनीं लेकिन नहीं बताया कि वह इस पर फैसला कब
सुनाएगी। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे,
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति
एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।
संविधान पीठ ने कहा यह केवल जमीन का
विवाद नहीं है, यह भावनाओं से जुड़ा हुआ है. यह सोच , भावना और अगर संभव हुआ
तो निदान से जुड़ा मामला है। इसलिए कोर्ट चाहता है कि आपसी बातचीत से इसका
हल निकले। जस्टिस बोबड़े ने कहा जो पहले हुआ उस पर हमारा कोई नियंत्रण
नहीं. विवाद में अब क्या है हम इस उस पर बात कर रहे हैं. सिर्फ आपसी बातचीत
से ही बदल सकता है। पीठ ने कहा मुगल शासक बाबर ने क्या किया और उसके बाद
क्या हुआ हमें इससे मतलब नहीं है। मौजूदा समय में क्या हो रहा है, हम बस
इसी पर विचार कर सकते हैं। मध्यस्थता कौन करे इस पर जस्टिस बोबड़े बोले ने
कहा कि यह गोपनीय होना चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा पक्षकारों द्वारा
गोपनीयता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए. मीडिया में इसकी टिप्पणियां नहीं
होनी चाहिए । प्रक्रिया की रिपोर्टिंग ना हो. अगर इसकी रिपोर्टिंग हो तो
इसे अवमानना घोषित किया जाए.। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह केवल
पार्टियों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि दो समुदायों को लेकर विवाद है ।
उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से संकल्प की वांछनीयता एक
आदर्श स्थिति है. लेकिन असल सवाल यह है कि ये कैसे किया जा सकता है?
रामलला विराजमान की ओर से कहा गया कि हाईकोर्ट ने इस मामले में आपसी बातचीत
से विवाद को हल करने की कोशिश की थी लेकिन नहीं हो पाया था ।
अदालत
से बाहर तमाम पक्षों ने कोर्ट की पहल का स्वागत किया है । गौरतलब है कि
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान सुझाव दिया था कि दोनों पक्षकार
बातचीत का रास्ता निकालने पर विचार करें. । न्यायालय ने कहा था कि इससे
”संबंधों को बेहतर”बनाने में मदद मिल सकती है । सुप्रीम कोर्ट में
अयोध्या भूमि विवाद में चार दिवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के
2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपील लंबित हैं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले
में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों-
सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर बांट दी जाये।
