कांगड़ा

पेयजल स्त्रोतों की स्वच्छता का रखें विशेष ध्यान

हमारे जीवन में जल के महत्व एवं अनिवार्यता के दृष्टिगत हमारी सेहत के लिए जल का स्वच्छ एवं शुद्ध होना जरूरी है। दूषित जल एवं दूषित खाद्य पदार्थों के सेवन से पीलिया जैसे रोग होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए आवश्यक है कि पीलिया रोग से बचाव के लिए आस-पास के परिवेश, पानी की टंकियों तथा जल स्त्रोतों को साफ-सुथरा रखा जाए। थोड़ी सी सावधानी एवं सतर्कता से इस रोग से बचा जा सकता है। कांगड़ा जिला में स्वास्थ्य और सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर पेयजल स्त्रोतों की साफ-सफाई एवं क्लोरीनेेशन करता है। इसके अतिरिक्त सैंपल लेकर पेयजल की जांच सुनिश्चित बनाई जा रही है, ताकि लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाया जा सके। जिला के सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता ने अवगत करवाया कि विभाग ने शुद्ध पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित बनाने के लिए प्रभावी प्रयास किए हैं। अप्रैल माह से 15 जुलाई, 2018 तक जिला में धर्मशाला, पंचरूखी, थुरल, नूरपुर, शाहपुर, देहरा, इंदौरा तथा ज्वाली में स्थित विभागीय जल जांच प्रयोगशालाओं में पानी के 4603 नमूनों की जांच की गई है तथा ये सैंपल ठीक पाए गए हैं।
वायरल हैपेटाइटिस या जॉन्डिस को साधारणतः लोग पीलिया के नाम से जानते हैं। यह रोग बहुत ही सूक्ष्म विषाणु (वाइरस) से होता है। शुरू में जब रोग धीमी गति से व मामूली होता है तब इसके लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं, परन्तु जब यह उग्र रूप धारण कर लेता है तो रोगी की आंखे व नाखून पीले दिखाई देने लगते हैं, लोग इसे पीलिया कहते हैं।
पीलिया रोग मुख्यतः तीन प्रकार का होता है; वायरल हैपेटाइटिस ए, वायरल हैपेटाइटिस बी तथा वायरल हैपेटाइटिस नान ए व नान बी।
कैसे होता है रोग का प्रसार यह रोग ज्यादातर ऐसे स्थानों पर होता है जहां के लोग व्यक्तिगत व वातावरणीय सफाई पर कम ध्यान देते हैं। भीड़-भाड़ वाले इलाकों में भी यह ज्यादा होता है। वायरल हैपटाइटिस बी किसी भी मौसम में हो सकता है। वायरल हैपटाइटिस ए तथा नान ए व नान बी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के नजदीकी सम्पर्क से होता है। ये वायरस रोगी के मल में होते हैं तथा पीलिया रोग से पीड़ित व्यक्ति के मल से, दूषित जल, दूध अथवा भोजन द्वारा इसका प्रसार होता है।
ऐसा हो सकता है कि कुछ रोगियों की आंख, नाखून या शरीर आदि पीले नहीं दिख रहे हों परन्तु यदि वे इस रोग से ग्रस्त हो तो अन्य रोगियों की तरह ही रोग को फैला सकते हैं। वायरल हैपटाइटिस बी खून व खून से निर्मित पदार्थों के आदान-प्रदान एवं यौन क्रिया द्वारा फैलता है। यहां खून देने वाला रोगी व्यक्ति रोग वाहक बन जाता है। बिना उबाली सुई और सिरेंज से इन्जेक्शन लगाने पर भी यह रोग फैल सकता है।
पीलिया रोग से ग्रस्त व्यक्ति वायरस, निरोग मनुष्य के शरीर में प्रत्यक्ष रूप से अंगुलियों से और अप्रत्यक्ष रूप से रोगी के मल से या मक्खियों द्वारा पहुंच जाते हैं। इससे स्वस्थ मनुष्य भी रोग ग्रस्त हो जाता है।
रोग के लक्षण
जिला चिकित्सा अधिकारी कांगड़ा डॉ0 राजेश गुलेरी बताते हैं कि ए प्रकार के पीलिया और नान ए व नान बी तरह के पीलिया रोग के संक्रमण के तीन से छः सप्ताह के बाद ही रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
बी प्रकार के पीलिया (वायरल हैपेटाइटिस) के रोग की छूत के छः सप्ताह बाद ही रोग के लक्षण प्रकट होते हैं।
पीलिया रोग के लक्षण
डॉ0 गुलेरी बताते हैं कि पीलिया रोग के मुख्य लक्षण रोगी को बुखार रहना, भूख न लगना, चिकनाई वाले भोजन से अरूचि, जी मिचलाना और कभी कभी उल्टियां होना, सिर में दर्द होना, सिर के दाहिने भाग में दर्द रहना, आंख व नाखून का रंग पीला होना, पेशाब पीला आना तथा अत्यधिक कमजोरी और थका थका सा लगना इत्यादि होते हैं। रोग के लक्षण प्रतीत होने पर रोगी को शीघ्र ही डॉक्टर के पास जाकर परामर्श लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त रोगी को अधिक से अधिक आराम करना चाहिए एवं लगातार जांच कराते रहना चाहिए। रोगी को डॉक्टर की सलाह के अनुसार भोजन में प्रोटीन और कार्बोज वाले पदार्थाें का सेवन करना चाहिए। नीबूं, संतरे तथा अन्य फलों का रस भी इस रोग में गुणकारी होता है, वसा युक्त गरिष्ठ भोजन का सेवन इसमें हानिकारक है। चावल, दलिया, खिचड़ी, धूूली, उबले आलू, शकरकंदी, चीनी, ग्लूकोज, गुड, चीकू, पपीता, छाछ, मूली आदि कार्बोहाड्रेट वाले पदार्थ हैं, इनका सेवन अधिक करना चाहिए।
रोग की रोकथाम एवं बचाव
पीलिया रोग के प्रकोप से बचने के लिए कुछ साधारण बातों का ध्यान रखना जरूरी है। खाना बनाने, परोसने, खाने से पहले व बाद में और शौच जाने के बाद में हाथ साबुन से अच्छी तरह धोने चाहिए। भोजन जालीदार अलमारी या ढक्कन से ढक कर रखना चाहिए, ताकि मक्खियों व धूल से बचाया जा सकें। ताजा व शुद्ध गर्म भोजन करें दूध व पानी उबाल कर पीना चाहिए।
स्वच्छ जल की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जलस्त्रोतों की और उनके आस-पास साफ-सफाई रखें, अपने घरों की पानी की टंकियों की भी समय-समय से सफाई रखें, एफटीके से पानी की गुणवत्ता चैक करें तथा उबला हुआ पानी पीएं। पानी में क्लोरीन डालंे तथा प्रयोगशाला में पानी टैस्ट के लिए भेजें।

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