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मध्यस्थता समिति के हवाले अयोध्या भूमि विवाद

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अयोध्या विवाद में एक बड़ा फैसला सुनाते हुए इस मामले को एक बार फिर मध्यस्थता से सुलझाने का आदेश दिया. इससे पहले कोर्ट ने कहा था कि ये मामला आस्था से जुडा हुआ है. कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए तीन सदस्यीय पैनल का भी एलान किया और कहा कि ये पैनल 8 हफ्ते में इस मामले पर सभी पक्षों से बातचीत करे. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में लगभग 8 साल से इस मामले की सुनवाई चल रही है.

दशकों से अनसुलझे रहे और लंबी कानूनी प्रक्रिया में उलझे अयोध्या भूमि विवाद को हल करने के लिए देश की सर्वोच्च अदालत ने मध्यस्थता का रास्ता अपनाने का आदेश दिया है. सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या भूमि विवाद का मध्यस्थता के जरिए सर्वमान्य समाधान खोजने के लिए एक समिति का गठन किया है, जिसे आठ सप्ताह में प्रक्रिया पूरी करनी है.

प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने आदेश में विवाद को समिति को सौंपते हुये कहा कि संभावित समाधान तक पहुंचने के लिए इसे मध्यस्थता के लिये भेजने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ ने कहा कि मध्यस्थता के लिए गठित समिति की अध्यक्षता पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला करेंगे और इसके अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पांचू शामिल हैं. पीठ ने कहा कि समिति मध्यस्थता प्रक्रिया के दौरान आवश्यकता होने पर   कुछ बाहरी लोगों से कानूनी मदद ले सकती है. पीठ ने निर्देश दिया कि मध्यस्थता की सारी कार्यवाही उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में होगी और यह प्रक्रिया आठ सप्ताह के भीतर पूरी की जाएगी. मध्यस्थता समिति को चार सप्ताह के भीतर अपनी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट न्यायालय को देनी होगी. इस समिति को एक सप्ताह के भीतर अपना काम शुरू करना है. कोर्ट ने आदेश में सुझाव दिया है कि मध्यस्थता की कार्यवाही बंद कमरे में हो और मीडिया इसकी कार्यवाही की रिपोर्टिंग न करे. हालांकि कोर्ट ने मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगाने का अधिकार मध्यस्थता समिति को दिया है. न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता प्रक्रिया की सफलता सुनिश्चित करने के लिए इसकी कार्यवाही की पूरी गोपनीयता बनाए रखनी होगी. पीठ ने कहा कि समिति को अपना काम करने में यदि किसी प्रकार की परेशानी आती है, तो समिति के अध्यक्ष शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को इस बारे में सूचित करेंगे.

विवाद से जुड़े ज्यादातर पक्षों ने मध्यस्थता का स्वागत किया है. मध्यस्थता के लिए बनी समिति ने भरोसा दिया है कि वो समाधान के लिए पूरी कोशिश करेगी.

संविधान पीठ ने भूमि विव़ाद को मध्यस्थता के लिए भेजने के बारे में बुधवार को सभी संबंधित पक्षों को सुना था. पीठ ने कहा था कि उसका मानना है कि मामला मूल रूप से तकरीबन 1,500 वर्ग फुट भूमि भर से संबंधित नहीं है बल्कि धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है. गौरतलब है शीर्ष अदालत ने अयोध्या की 2.77 एकड़ भूमि के विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है. हाईकोर्ट ने इस भूमि को विवाद के तीनों पक्षकारों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.

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