पंजाब

एस.जी.पी.सी चुनाव में देरी का मुद्दा केंद्र के पास उठाने के लिए सदन द्वारा कैप्टन अमरिन्दर सिंह अधिकृत

उचित समय पर चुनाव लोगों का अधिकार और देरी अनुचित -कैप्टन अमरिन्दर सिंह
चण्डीगढ़ – एस.जी.पी.सी चुनाव में देरी का मुद्दा केंद्र के पास उठाने के लिए राज्य विधानसभा द्वारा अधिकृत किये जाने से कुछ घंटे बाद ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि गुरुद्वारों पर नियंत्रण करने वाली उच्चतम संस्था के ठीक समय पर चुनाव लोगों का अधिकार है।सदन से बाहर पत्रकारों के साथ अनौपचारिक बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि एस.जी.पी.सी चुनाव में देरी गलत और पंजाब के लोगों के साथ पक्षपात है। इससे पहले आम आदमी पार्टी के विधायक एच.एस.फूलका द्वारा सदन में उठाए गए मुद्दे के जवाब में उन्होंने कहा कि एस.जी.पी.सी चुनाव में वोट करना हरेक पंजाबी का लोकतांत्रिक अधिकार है और केंद्र सरकार द्वारा इससे इन्कार नहीं किया जा सकता।शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के विरोध में सदन ने यह मुद्दा केंद्र सरकार के पास उठाने के लिए कैप्टन अमरिन्दर सिंह को अधिकृत किया। मुख्यमंत्री ने सदन को भरोसा दिलाया कि 2016 से लम्बित पड़े एस.जी.पी.सी चुनाव को जल्दी करवाने के लिए दबाव बनाने के लिए वह केंद्रीय गृह मंत्री को मिलेंगे।आम आदमी पार्टी द्वारा पेश किये गए प्रस्ताव को स्वीकृत करने के लिए अपनी सरकार द्वारा स्पीकर की तरफ से आज्ञा दिए जाने की माँग करते हुए कैप्टह्यन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि गुरुद्वारा एक्ट राष्ट्रीय कानून है और इसका समय पर चुनाव करवाना केंद्र सरकार की ड्युटी है।शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के विरोध में स्पीकर ने इस मतेे पर वोटिंग के लिए प्रस्ताव किया जिसके नतीजे के तौर पर सदन ने यह मुद्दा तुरंत केंद्र सरकार के समक्ष उठाने के लिए कैप्टन अमरिन्दर सिंह को अधिकृत कर दिया। इस प्रस्ताव को वोट के लिए रखे जाने पर सत्ताधारी पार्टी और आम आदमी पार्टी के सदस्यों ने डैस्क थपथपा कर इसका स्वागत किया।बाद में मुख्यमंत्री ने पत्रकारों को बताया कि इस मुद्दे पर सदन में सर्वसम्मति थी क्योंकि यह चुनाव तीन साल से लम्बित हैं। सिफऱ् अकाली और भाजपा इसके हक में नहीं थे। इस्तीफ़ा देने वाले आम आदमी पार्टी के कुछ मैंबरों के लगातार सदन के मैंबर बने रहने के सवाल के सम्बन्ध में मुख्यमंत्री ने कहा कि वह उतनी देर लगातार मैंबर बने रहेंगे जितनी देर उनके इस्तीफे स्वीकृत नहीं होते। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने स्वयं भी 1984 में पार्लियामेंट से इस्तीफ़ा दे दिया था और वह इस्तीफ़ा स्वीकृत किये जाने तक 2 महीने लगातार मैंबर बने रहें।

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