नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अर्जेटीना के शहर ब्यूनस आयर्स में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए 28 नवंबर से दो दिसंबर तक अर्जेंटीना की यात्रा पर रहेंगे। इस दौरान वह चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और अन्य राष्ट्रों के नेताओं से मुलाकात करेंगे। इसके इतर दुनिया की नजर प्रधानमंत्री मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी के बीच इस हफ्ते के आखिर में त्रिपक्षीय बातचीत पर भी होगी। इन प्रमुख नेताओं से मुलाकात को जी-20 की बैठक से जोड़ कर देखा जा रहा है। जी-20 की बैठक इसलिए भी अहम मानी जा रही है, क्योंकि भारत प्रशांत और हिंद क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व व विस्तार से चिंतित है। प्रशांत क्षेत्र और चीन सागर पर ड्रैगन का प्रभुत्व:-प्रशांत क्षेत्र में चीन का कई अन्य देशों से मतभेद और विवाद चल रहा है। चीन पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता रहा है। इसे लेकर वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान के बीच टकराव है। क्योंकि इन देशों के आर्थिक हित इस सागर से जुड़े हैं। इसी तरह से पूर्वी चीन सागर में जापान के साथ भी उसका विवाद है। दरअसल, इस समुद्री रास्ते से सालाना लगभग तीन खरब डॉलर का व्यापार होता है। दक्षिण चीन सागर खनिज, तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के लिहाज से अत्यधिक उपयोगी है। भारत उठा सकता है कई मुद्दे:-भारत हिंद महासागर समेत प्रशांत क्षेत्र में चीनी दखल का लगातार विरोध करता आया है। उसने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीनी रवैये का विरोध किया है। जी-20 बैठक में एक बार फिर यह मुद्दा गरमा सकता है। जी-20 के सदस्य देश इस मामले को लेकर सख्त रूख अपना सकते हैं। ऐसे में भारत और वियतनाम या भारत और जापान का क़रीब आना चीन के लिए चिंता की बात है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले में चीन का क्या स्टैंड होता है।इस साल जून में सिंगापुर में आयोजित शांगरीला संवाद में प्रधानमंत्री मोदी के स्टैंड से यह साफ था कि भारत इस क्षेत्र को रणनीतिक या कुछ देशों के क्लब के रूप में नहीं देखता। इस क्षेत्र को वह अवसरों और चुनौतियों से भरा एक प्राकृतिक क्षेत्र मानता है। उन्होंने इस क्षेत्र में मुक्त और स्थिर अंतरराष्ट्रीय व्यापार व्यवस्था पर जोर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी दुनिया में ईंधन के मूल्यों में अस्थिरता के खतरे को इस बैठक में उठा सकते हैं। इसके अलावा आतंकवाद के वित्त पोषण तथा धनशोधन का मामला भी भारत उठा सकता है। डब्ल्यूटीओ को मजबूत करने के मुद्दे पर यानी डब्ल्यूटीओ के सुधार पर भी चर्चा हो सकती है। अमेरिका और चीन का व्यापार मुद्दा हो सकता है हावी:-जी-20 की बैठक ऐसे समय हो रही है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध चरम पर है। इसलिए यह कयास लगाया जा रहा है कि दोनों देशों के बीच चल रहे व्यापारिक गतिरोध का मामला यहां उठ सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति के चीनी रूख को देखते हुए लोगों की नजर इस बैठक पर टिकी है। क्या है जी-20 -जी-20 में शामिल यूरोपीय संघ समेत 19 सदस्य देश दुनिया की आबादी का दो तिहाई से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं। वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का करीब 85 फीसद हिस्सेदारी इन मुल्कों की है। इसके अलावा वैश्विक व्यापार का 75 फीसद हिस्सा इन देशों का है। इस लिहाज से यह दुनिया का सबसे ताकतवर संगठन है। -जी-20 में भारत समेत अर्जेंटिना, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, जर्मनी, फ्रांस, इंडोनेशिया, इटली, जापान, रिपब्लिक ऑफ कोरिया, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अमेरिका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ है। -जी-20 की अध्यक्षता एक सुनिश्चित प्रक्रिया के तहत हर वर्ष बदलती रहती है। यह प्रक्रिया इसके लोकतांत्रिक स्वरूप और क्षेत्रीय संतुलन को सुदृढ़ और सुनिश्चित करती है। इस संगठन का कोई स्थाई सचिवालय नहीं है। अलबत्ता जी-20 एजेंडा पर परामर्श और वैश्विक अर्थव्यवस्था में हुए विकास पर प्रतिक्रिया देने के लिए उन्हें एक साथ लाने की जिम्मेदारी G-20 के अध्यक्ष की होती है। -वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारी का जिम्मा वरिष्ठ अधिकारियों का होता है। इन्हें शेरपा कहा जाता है। ये शेरपा संगठन के नेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। -दरअसल, जी-20 दुनिया के प्रमुख देशों के बीच वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों का संगठन है। इसमें 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं। यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष और यूरोपीय केंद्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। इसकी स्थापना 25 सिंतबर 1999 को अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में हुई थी। विश्व के सात प्रमुख संपन्न देशों ने इसकी आधारशिला रखी। जी-20 की पहली बैठक दिसंबर 1999 में बर्लिन में हुई थी। -इसका मकसद विश्व बाजार में अस्थिरता को खत्म करना है। इसके अलावा विकसित औद्योगिक देशों के साथ-साथ उभरते बाज़ारों को जोड़ना शामिल है। इसमें चीन और भारत प्रमुख है। जी – 20 के नेता हर साल एक बार बैठक करते हैं। -इसके अलावा हर साल सभी सदस्य देशों के वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक के गवर्नर वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में सुधार लाने, वित्तीय नियमन में सुधार लाने और प्रत्येक सदस्य देश में जरूरी प्रमुख आर्थिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए बैठक करते हैं।
