नई दिल्ली। अमेरिका अब अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिकन आर्म्ड फोर्स की छठी ब्रांच बनाने की तैयारी कर रहा है। यह ब्रांच जमीन के लिए नहीं बल्कि स्पेस के लिए तैयार की जाएगी। यही वजह है कि इस ब्रांच को स्पेस फोर्स का नाम दिया गया है। 2020 तक औपचारिक रूप से यह सेना का अंग बनेगी। अंतरिक्ष में अगले विश्व युद्ध होने की आशंका के मद्देनजर अमेरिका की तैयारियां जोरों पर हैं। दुनिया में अब तक सिर्फ रूस के पास स्पेस फोर्स थी जो 1992-97 और 2001-11 में सक्रिय रही।
रूस और चीन से डर गया अमेरिका:-नई सेना की तैनाती के पीछे रूस और चीन से डर बड़ी वजह है। अमेरिकी राष्ट्रपति और उनके समर्थकों को लगता है कि दोनों देश बड़ी संख्या में अंतरिक्ष में उपग्रह लांच कर रहे हैं। उन्हें डर है कि अमेरिका संचार, नेवीगेशन और गुप्त सूचनाओं के लिए उपग्रहों पर अत्यधिक निर्भर हो गया है। ऐसे में अगर अमेरिकी उपग्रहों पर हमला होता है तो अमेरिका की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसीलिए वह पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे अपने उपग्रहों की सुरक्षा पुख्ता करने के लक्ष्य से इस नई सेना की तैनाती करना चाहते हैं। कुछ साल पहले चीन ने अपने एक निष्क्रिय हो चुके सेटेलाइट को धरती से मिसाइल दागकर नष्ट किया था। उसकी यह उपलब्धि भी अमेरिका की चिंता बढ़ाने वाली रही।
अभी तक थी पांच शाखाएं अब बनेगी छठी शाखा:-फिलहाल अमेरिकी सेना की पांच शाखाएं हैं- वायु सेना, थल सेना, कोस्ट गार्ड, मरीन और नौसेना। स्पेस फोर्स छठी शाखा बनेगी। इसके लिए सबसे पहले इस साल के अंत तक अमेरिकी स्पेस कमांड बनाया जाएगा। इसके बाद ट्रंप प्रशासन इसके लिए फंडिंग जुटाएगा और कानूनी अनुमतियां लेने के बाद अगले वर्ष तक इसे स्वतंत्र विभाग के तौर पर सेना में शामिल करेगा। इसके लिए अमेरिका स्पेस वैपंस भी तैयार करेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसका पूरा मसौदा तैयारा कर इसकी घोषणा भी कर दी है। ट्रंप के इस फैसले ने न सिर्फ अमेरिकियों को चौंकाने का काम किया है बल्कि पूरी दुनिया उनके इस फैसले से हैरत में है।
क्या है स्पेस फोर्स:-यह सैन्य विभाग की ऐसी शाखा होती है जो अंतरिक्ष में युद्ध करने में सक्षम होती है। डोनाल्ड ट्रंप ने नए और स्वतंत्र सैन्य विभाग के लिए यही नाम सोचा है। फिलहाल अमेरिका में अंतरिक्ष के सभी मामले वायु सेना के अंतर्गत आते हैं। ट्रंप काफी समय से ऐसी सेना तैयार करने के विचार में थे, जिसका कद बिकुल वायु या थल सेना जितना हो।
यूएस के लिए रूस और चीन बड़ी रुकावट:-अमेरिका के इस प्रोजेक्ट पर जानकार मानते हैं कि चीन और रूस जैसे बड़े देश कभी नहीं चाहेंगे कि अमेरिका इस क्षेत्र में उनसे आगे निकल जाए। यहां पर आपको ये बताना भी जरूरी होगा कि चीन भी अपने स्पेस मिलिट्री प्रोग्राम पर पिछले दो वर्षों से काम कर रहा है। यहां ये भी काफी दिलचस्प है कि एक ओर जहां अमेरिका स्पेस फोर्स बनाने की राह में आगे बढ़ रहा है वहीं दूसरी ओर भारत आउटर स्पेस में हथियारों की रेस के सख्त खिलाफ है। यूं भी मौजूदा समय में रूस और चीन का अमेरिका के साथ कई मुद्दों पर 36 का आंकड़ा है।
युद्ध क्षेत्र नहीं है स्पेस;-ट्रंप की इस योजना में सबसे बड़ी बाधा भी स्पेस ही बनने वाली है। इसकी वजह ये है कि स्पेस को किसी भी मिलिट्री ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। लिहाजा यहां का फिजीकल एनवायरमेंट ट्रंप की योजना के मुताबिक सटीक नहीं बैठता है। आपको बता दें कि धरती पर कुछ ऐसी जगह हैं जहां पर युद्ध की गतिविधियों को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। इसमें अंटार्कटिका, नोर्वे आदि शामिल हैं। यहां आपको ये भी बता दें कि अंटार्कटिका को विश्व बिरादरी ने रिसर्च के मकसद से युद्धक क्षेत्रों से अलग किया है। वहीं नोर्वे में दुनिया का सबसे बड़ा बीज बैंक है, जो बर्फ की सतह से कई मीटर नीचे स्थित है। यहां पर धरती पर मौजूद लगभग हर वनस्पति के बीज मौजूद हैं। लिहाजा एक समझौते के तहत इसको भी इसी श्रेणी में रखा गया है। इसी तरह से स्पेस भी बिल्कुल अलग है।
मैटिस का वो पत्र:-ट्रंप इस बात को जरूर मान रहे हैं कि अमेरिका स्पेस में बढ़त बनाने की जुगत में लगा है। वहीं दूसरी और ट्रंप प्रशासन के कुछ सदस्य ट्रंप की इस योजना पर सवाल भी खड़े कर रहे हैं। आपको बता दें कि इस नई आर्म्ड फोर्स की शुरुआत पहले से ही हो रही थी। इसका खुलासा अमेरिका के रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने पिछले वर्ष अक्टूबर में सदन को लिखे एक पत्र में किया था। उस वक्त उन्होंने इसको अमेरिका के लिए बड़ा चैलेंज है। इससे जुड़ा एक बड़ा तथ्य ये भी है कि यह अमेरिकी बजट में बड़ा इजाफा भी करने वाला है। वहीं एक तथ्य यह भी है कि इस फोर्स का मकसद संयुक्त युद्धनीति में अमेरिकी की मौजूदगी और उसकी बढ़त है।
