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एनआरसी पर ठप रही राज्यसभा, हंगामे के चलते राज्यसभा में बहस का जवाब नहीं दे सके गृहमंत्री

एनआरसी के मसले पर जारी सियासत का रंग एक बार फिर राज्यसभा में देखने को मिला और बार बार के हंगामे के बाद सदन को गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया। एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर पर छिड़ा राजनीतिक घमासान आज भी जारी रहा। संसद के दोनों सदनों में आज यह मसल उठा। राज्यसभा में तो इस मुद्दे पर इतना हंगामा हुआ कि सदन की कार्यवाही दिनभर के लिए स्थगित करनी पड़ी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपने कल के बयान को पूरा करना चाहते थे और गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी एनआरसी के मुद्दे परअपनी बात रखना चाहते थे लेकिन राज्यसभा में हंगामे के चलते दोनों अपनी बात नहीं रख पाए। उधर संसद के बाहर इस मसले पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चारों तरफ से घिर गई हैं। दरअसल ममता बनर्जी ने मंगलवार को एक विवादास्पद बयान दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि एनआरसी का मुद्दा ऐसी चलता रहा तो देश में खूनखराबा होगा और गृहयुद्ध हो सकता है। एनआरसी के मसले पर जारी सियासत का रंग एक बार फिर राज्यसभा में देखने को मिला और बार बार के हंगामे के बाद सदन को गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया । एनआरसी के मुद्दे पर मंगलवार को हुई चर्चा में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के भाषण के दौरान ही रुक गयी थी। बुधवार को भी कल चर्चा के दौरान विपक्ष के सदस्य अमित शाह की टिप्पणी को वापस लेने की मांग कर रहते हुए हंगामा कर रहे थे। हंगामे के चलते न अमित शाह का अधूरा भाषण हो सका और न ही गृहमंत्री चर्चा का जवाब दे सके। सभापति ने इस हंगामे पर अपनी चिंता जाहिर की। लोकसभा में भी ये मसला उठा और कांग्रेस और टीएमसी के सदस्यों ने अपनी बात रखी। सदन के अंदर तो ज्यादा चर्चा नहीं हो सकी लेकिन सदन के बाहर बयानबाजी का दौर जारी रहा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने कल इस मसले पर सिविल वार की धमकी वाला बयान दिया था। अब इस मसले पर ममता बैनर्जी चौतरफा घिर गयी हैं। बीजेपी और उनके सहयोगी इस मसले पर ममता पर जोरदार हमला तो बोल ही रहे हैं, ममता का साथ देने वाली कांग्रेस भी उनके साथ नहीं है। इस मामले में सरकार और बीजेपी सबसे ज्यादा हमला कांग्रेस पर कर रहे हैं। दरअसल असम में 1980 में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हावी था। इसे सुलझाने के लिए केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ। जिसके अनुसार, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक असम में प्रवेश करने वाले लोग और उनकी अगली पीढ़ी को भारतीय नागरिक माना जाएगा। यानी एनआरसी की शुरुआत कांग्रेस के समय में ही हुई। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी कहा था कि बांग्लादेश को 1971 के युद्ध के समय भारत आए शरणार्थियों को वापस लेना चाहिए । साथ ही कांग्रेस के एक और पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव ने भी कहा था कि बांग्लादेशियों की भारत में घुसपैठ राष्ट्रीय समस्या है और असम में अस्थिरता की जड़ में यही बात है। यहीं नहीं 1991 में नरसिम्हाराव सरकार ने अवैध बांग्लादेशियों को निकालने के लिए ऑपरेशन पुश बैक शुरु किया लेकिन बाद में दबाव में उसे वापस लेना पडा। सरकार बार बार ये बात कह रही है कि एनआरसी केवल अंतिम मसौदा है फाइनल लिस्ट नहीं है और जिनका नाम नहीं है वो घबराएं नहीं बल्कि प्रक्रिया के तहत अपनी आपत्तियां और दावे दर्ज कराएं । सरकार चाहती है कि संवेदनशील मसले को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जाए लेकिन विपक्ष इस मसले को संसद के बाहर उठा रहा है और संसद में हंगामा कर रहा है। मुख्य चुनाव आयुक्त ओ.पी. रावत ने कहा है कि असम में एन आर सी जारी होने के बाद भी असम की मतदाता सूची पर कोई असर नहीं पडेगा। डीडी न्यूज से साथ खास बातचीत में मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि आयोग की शर्ते पूरी करने वाले सभी नागरिकों को असम में मतदान का अधिकार रहेगा।

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