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जिस उम्र में दिग्गज खिलाड़ी भी संन्यास ले लेते हैं, उस उम्र में गरज रहा जाफर का बल्ला

नई दिल्ली-मुंबई को आठ रणजी खिताब दिलाने वाले वसीम जाफर ने जब दो साल पहले अपनी घरेलू टीम को छोड़कर पड़ोसी विदर्भ की रणजी टीम में प्रस्थान किया तो लोगों को लगा कि यह खिलाड़ी किसी तरह अपने कॅरियर को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। कुछ लोगों ने उन्हें स्वार्थी भी समझा, लेकिन पकी हुई दाढ़ी और लगभग झुके हुए कंधे से उन्होंने विदर्भ को लगातार दो खिताब दिलाकर बता दिया कि उन्हें अपना कॅरियर नहीं बचाना था बल्कि वह कुछ नया करना चाहते थे।वह मुंबई को इसलिए छोड़कर गए थे क्योंकि उन्हें पता था कि अगर वह मुंबई के लिए खेलते रहेंगे तो किसी एक युवा की जगह लेंगे। ऐसे युवा की जगह जो भविष्य में टीम इंडिया में जगह ले सकता है। यही कारण है कि जाफर स्टार से भरी हाईप्रोफाइल टीम मुंबई को छोड़कर विदर्भ गए और शानदार पारियां खेलकर उसे वह खिताब दिलाया जिसके लिए घरेलू टीमें सिर्फ सोचती रह जाती हैं।भारत के लिए 31 टेस्ट और दो वनडे खेलने वाले जाफर ने अपना आखिरी अंतरराष्ट्रीय मुकाबला 13 अप्रैल 2018 को खेला था। उन्हें पता है कि अब वह जो भी कर लें उनका टीम इंडिया में चयन नहीं हो सकता क्योंकि इस 16 फरवरी को वह 41 साल के होने जा रहे हैं, लेकिन 1996-97 में पहला प्रथम श्रेणी मैच खेलने वाले जाफर ने पिछले दो साल में खुद को घरेलू क्रिकेट के डॉन ब्रैडमैन के तौर पर स्थापित कर लिया।कभी अपनी धीमी बल्लेबाजी के लिए आलोचना झेलने वाले जाफर टेस्ट क्रिकेट के स्थायी बल्लेबाज हैं। वह धौनी की तरह विकेट के बीच में तेजी से रन नहीं ले सकते। वह मुहम्मद कैफ की तरह फील्डिंग नहीं कर सकते। वह वीवीएस लक्ष्मण की तरह कलाई का इस्तेमाल नहीं कर सकते। वह सचिन तेंदुलकर की तरह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में महान नहीं बन सके। वह विराट कोहली की तरह फटाफट बल्लेबाजी नहीं कर सकते, लेकिन वह इस उम्र में भी अद्भुत क्रिकेट खेलकर इन सबकी तरह भारतीय युवाओं को क्रिकेट के लिए प्रेरित कर रहे हैं। वह बता रहे हैं कि उनमें धौनी, कैफ, लक्ष्मण, सचिन और विराट वाली स्किल भले ही नहीं है, लेकिन उनमें एक वसीम जाफर रहता है जो बिना किसी की नकल किए, बिना यो-यो टेस्ट पास किए, बिना स्मार्ट दिखे भी 41 साल की उम्र में क्रिकेट को बहुत कुछ दे सकता है।
दोनों बार जाफर हीरो:-हाल ही में विदर्भ ने रणजी ट्रॉफी फाइनल के खिताबी मुकाबले में सौराष्ट्र को खिताबी मुकाबले में 78 रनों से हराकर दूसरी बार रणजी ट्रॉफी पर कब्जा किया। यह टीम दो बार ही यह खिताब जीत पाई है और दोनों ही बार जाफर टीम के सदस्य रहे। घरेलू क्रिकेट का ब्रैडमैन जाफर रणजी इतिहास के ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने जब भी फाइनल मैच खेला उनकी टीम को जीत हासिल हुई। जाफर ने 10वां रणजी खिताब जीता। इससे पहले वह आठ बार मुंबई रणजी टीम की खिताब जीतने वाली टीम के सदस्य रहे।पिछले साल उन्होंने विदर्भ का दामना थामा था। विदर्भ की टीम 2017-18 रणजी सत्र में पहली बार फाइनल में पहुंची और खिताब जीतने में कामयाब रही। मौजूदा सत्र में भी जाफर की टीम गतविजेता के रूप में फाइनल में थी और खिताब जीती। जाफर ने इस सत्र में चार शतक सहित कुल 1037 रन बनाए। उन्होंने दो दोहरे शतक भी जड़े। वह रणजी इतिहास में दो बार एक सत्र में 1000 से ज्यादा रन बनाने का कारनामा करने वाले पहले खिलाड़ी भी बने। उन्होंने साल 2008-09 के रणजी सत्र में भी 1000 से ज्यादा रन बनाए थे।
दिलीप सरदेसाई के रिकॉर्ड की बराबरी की;-18 साल मुंबई के लिए खेलने वाले जाफर ने 10 बार रणजी चैंपियन टीम का हिस्सा रहे दिलीप सरदेसाई के रिकॉर्ड की बराबरी की। अभी उन्होंने संन्यास नहीं लिया और वह अशोक मांकड़ (12) और अजित वाडेरकर (11) व मनोहर हार्दिकर (11) के रिकॉर्ड पर नजरें गड़ा सकते हैं। जाफर को 2016-17 में घुटने की चोट के कारण काफी समय क्रिकेट से दूर रहे। जब उन्होंने चोट से वापसी की तो काफी लोग इस 40 वर्षीय अनुभवी बल्लेबाज को अपने राज्य की टीम का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं देना चाहते थे। उनकी कंपनी इंडियन ऑयल को भी महूसस होने लगा था कि उनमें अब ज्यादा क्रिकेट नहीं बचा है और वह उन्हें ऑफिस में बैठकर डेस्क पर काम करने की सलाह देने लगे थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और नतीजा आपके सामने है।

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