चंडीगढ़ – दूध और दूध पदार्थों का सीधा मंडीकरण और विशेषकर घरों तक पहुँचाना दूध उत्पादकों के लिए न केवल आमदन बढ़ाने के लिए लाभप्रद है बल्कि इससे विचौलियों की मार से भी बचा जा सकता है। यह खुलासा पंजाब के पशु पालन, मछली पालन और डेयरी विकास मंत्री श्री बलबीर सिंह सिद्धू द्वारा ऐग्रोटैक-2018 के दौरान ‘सभ्य डेयरी फार्मिंग’ के विषय पर करवाए गए सैमीनार को संबोधन करने के अवसर पर किया गया।श्री बलबीर सिद्धू ने कहा कि दूध के पेशों के साथ जुड़े किसानों की आमदन बढ़ाने हेतु अब विचौलियों को दूध बेचने के पुराने और परंपरागत ढंग को बदलने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि सीधे मंडीकरण को उत्साहित करने के लिए पंजाब सरकार द्वारा डेयरी किसानों, दूध उत्पादक कंपनियों, सेल्फ हेल्प ग्रुपों जिनके पास 50 दुधारू पशु हैं और 500 लीटर दूध का रोज़मर्रा का उत्पादन किया जाता है, को ऑटोमैटिक दूध दुहने का यूनिट स्थापित करने के लिए 4 लाख रुपए की सब्सिडी दी जा रही है। इस संबंधी और जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि बीड़ दुसांझ, नाभा में देसी गायों को पालने और बचाने हेतु 12.5 करोड़ रुपए की लागत के साथ 75 एकड़ के क्षेत्रफल में एक गोकुल ग्राम भी बनवाया जा रहा है और देसी गायों की एक हरी-भरी सफारी भी स्थापित की जायेगी। इस सफारी में 600 प्रकार की देसी गायों जैसे साहिवाल, गिर, थारपरकर और रैडसिंधी आदि रखी जाएंगी। उन्होंने बताया कि गोकुल ग्राम में अब 200 गाएँ रखी गई हैं और इन अच्छी नस्ल की गायों को भविष्य में ब्रीडिंग के लिए सांड पैदा करने के लिए इस्तेमाल किया जायेगा।इस अवसर पर अच्छी किस्म और बीमारी रहित पशुओं की महत्ता बारे बताते हुए पीबीडी के मैनेजिंग डायरैक्टर डॅा. बरविन क्लार्क ने पशु पालन के लिए नई प्रौद्यौगिकी इख्तियार करने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि अब हमें दुधारू पशुओं की अच्छी सेहत और इम्युनाईज़ेशन के प्रति विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।मानवीय प्रयोग के लिए सुरक्षित दूध के मद्देनजऱ पशुओं में टीबी पाए जाने संबंधी अपने विचार पेश करते हुए उन्होंने कहा कि टीबी एक बड़ी कलीनकल, ख़ुराक और खेती समस्या है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसको अपनी सूची में पहले स्थान पर रखा है। बड़ी समस्या यह भी है कि टीबी का जरासीम (बैकटीरिया) बढऩे के लिए काफ़ी लम्बा समय लेता है और इसी कारण इसकी प्राथमिक स्टेजों के दौरान रोकथाम करना मुश्किल है। टीबी की जांच संबंधी मौजूदा टैस्ट बहुत कारगर नहीं हैं और अध्ययन यह बताते हैं कि टीबी से संक्रमित 100 गायों में से 20 गाएँ ज़रुरी इलाज से वंचित रह जातीं हैं, इसलिए ऐक्टीफेज रैपिड ऐसे जैसी नई तकनीक के प्रयोग की ज़रूरत है। इस नई तकनीक के द्वारा 3 महीनों के लंबे इंतज़ार की जगह केवल 6 घंटों में ही जरासीम (बैकटीरिया) का ईलाज किया जा सकता है। इस टैस्ट की एक और विशेषता यह है कि इसमें इलाज दूध और मल दोनों के द्वारा किया जा सकता है। डॉ.क्लार्क ने और बताया कि चमड़ी जांच के दौरान 20 फीसद पीडि़त गायों का पता नहीं चल पाता। उन्होंने आगे कहा कि 2002 में छपी यूके की एक स्टडी के मुताबिक 2 फीसद रिटेल पैस्चुराईजड़ दूध में एमएपी(कल्चर) पाया गया है और इसी स्टडी में पीसीआर द्वारा लिए 12 फीसद सैंपलों में एमएपी पाया गया था।इस अवसर पर अन्यों के अलावा श्री मनदीप सिंह संधू, मुख्य कमिशनर, पंजाब ट्रांसपेरैंसी और अकाऊंटेबिलिटी कमीशन, डा. इन्द्रजीत सिंह, डायरैक्टर पशु पालन विभाग, श्री इन्द्रजीत सिंह, डायरैक्टर डेयरी विकास, प्रो. पी.के उप्पल, श्रीमती प्रतिभा शर्मा, जीएम, नाबार्ड, श्री गुरमीत सिंह भाटिया, चेयरमैन, किसान घोष्टीज़-ऐग्रोटैक-2018 और एम.डी अजूनी बायोटैक लिमिटड और डॉ.एच.एस काहलों, जनरल सचिव, साहिवाल और देसी पशु सोसायटी भी मौजूद थे।