नई दिल्ली। थैलेसीमिया पीड़ितों की मुश्किलें और जिंदगी का संघर्ष बयां करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल हुई है। याचिका में निशक्त जन अधिकार कानून (राइट टु पर्सन विद डिसएबेलिटी) 2016 की दुहाई देते हुए थैलेसीमिया पीड़ितों को मुफ्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका थैलेसीमिया पीड़ित 13 वर्षीय बच्ची के पिता मनवीर सिंह ने दाखिल की है। कोर्ट ने याचिका पर केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।बेटी की बीमारी के चलते थैलेसीमिया पीड़ितों की हालत से रूबरू होने वाले मनवीर का कहना है कि हर महीने 10,000 से 12,000 रुपये का खर्च बेटी की दवाइयां खरीदने में आता है। ये दवाइयां सोसाइटी से लेनी पड़ती हैैं, दवाइयां अस्पतालों में और आम मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलती हैैं। इस रोग में रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। पीड़ित को रक्त चढ़ाने में भी लापरवाही होती है। कई बार उसमें फिल्टर का प्रयोग नहीं किया जाता। मानवीर का कहना है कि ऐसे मरीजों की परेशानी देखते हुए ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मनवीर की वकील स्नेहा मुखर्जी की दलीलें सुनने के बाद याचिका में प्रतिपक्षी बनाए गए केंद्र व सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। याचिका में कहा गया है कि भारत में हर वर्ष करीब 10 से 12 हजार बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित जन्म लेते हैैं। देश में कहीं भी इस बीमारी के प्रति जागरुकता अभियान नहीं चलाया जा रहा है, जबकि यह एक घातक बीमारी है जो कि व्यक्ति को जन्म से ही होती है।याचिकाकर्ता का कहना है कि अगर गर्भावस्था में थैलेसीमिया की जांच हो जाए, तो थैलेसीमिया रोगियों का जन्म रोका जा सकता है, लेकिन गर्भास्था के दौरान इसकी जांच की सुविधा बहुत कम जगह है। दिल्ली तक में सभी अस्पतालों में इसकी जांच की सुविधा नहीं है, सिर्फ एम्स और एलएनजेपी अस्पताल में गर्भावस्था के दौरान थैलीसीमिया जांच की सुविधा है। उन्होंने कोर्ट से मांग की है कि राज्य के मेडिकल कॉलेजों में भी थैलेसीमिया के वार्ड नहीं है, उन्हें बनवाया जाए ताकि रोगी वहां इलाज करा सकें।याचिका में थैलेसीमिया के इलाज और उसकी रोकथाम को लेकर बहुत सी मांगें की गई हैैं। जिसमें मरीजों को हर तरह की चिकित्सा सुविधा मुफ्त मुहैया कराने की मांग है। कहा गया है कि निश्क्त जन अधिकार कानून 2016 में थैलेसीमिया पीड़ितों को विकलांगता श्रेणी में जोड़ा गया है, ऐसे में इस कानून की धारा 25 के मुताबिक… -थैलेसीमिया पीड़ितों को दी जाने वाली सारी सुविधाएं और इलाज मुहैया कराया जाए। -एक नेशनल रजिस्ट्री बनाई जाए, जहां सभी थैलेसीमिया पीड़ित रजिस्टर हों। -साथ ही, थैलेसीमिया का इलाज उपलब्ध कराने वाले अस्पताल भी रजिस्टर हों। मांग की गई है कि सरकारों को थैलेसीमिया रोग की रोकथाम के उपाय करने और इस बीमारी के प्रति जागरुकता लाने के इंतजाम करने का निर्देश दिया जाए। गर्भावस्था के दौरान थैलेसीमिया की जांच अनिवार्य कर दी जाए ताकि शुरुआत में ही पता चल सके कि गर्भ में पल रहा बच्चा इसका पीड़ित तो नहीं है।मनवीर ने अपना जीवन थैलेसीमिया पीड़ितों को समर्पित कर दिया है। वे ऐसे रोगियों के इलाज और उन्हें सुविधाएं दिलाने में लगे रहते हैं, यहां तक कि बोनमैरो ट्रांसप्लांट के लिए मरीज को तमिलनाडु के वैलूर अस्पताल में ले जाते हैं, सरकारी फंड दिलाने में सहायता करते हैं। जनवरी में भी वह एक बच्चे को बोनमैरो ट्रांसप्लांट के लिए ले जाने वाले हैं। उन्होंने थैलेसीमिया पीड़ितों को इलाज की सुविधाओं के बारे में प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा था। जिसके परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें जवाब में कुछ अधिकारियों से मिलने को कहा गया था। जिसके बाद थैलेसीमिया पीड़तों के इलाज के लिए कोल इंडिया के सीएसआर फंड से बोनमैरो ट्रांसप्लांट के लिए दस लाख तक की आथिर्क मदद, दस साल तक के बच्चे के लिए देने की नीति तय हुई। हालांकि मनवीर का कहना है कि यह राशि कम है बोनमैरो ट्रांस्प्लांट मे 20-25 लाख रुपये का खर्च आता है। ऐसे में बाकी खर्च मरीज के परिवार को उठाना पड़ता है जो कि निम्न और मध्यम वर्ग के लिए मुश्किल होता है।