1984 के सिख विरोधी दंगों के 34 साल बाद एक बार फिर इंसाफ की आस जगी है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद 2015 में मामले की फिर से जांच के लिए गृहमंत्रालय ने एसआईटी के गठन का फैसला किया था और इस फैसले के बाद पहली बार इसमें किसी को सजा का एलान हुआ है। दिल्ली की अदालत ने मंगलवार को एक मामले में एक दोषी को फांसी की सजा सुनाई जबकि एक अन्य को उम्रकैद का आदेश दिया। फैसले का चारो ओर स्वागत हुआ है। कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर हमला बोला और मामले की जांच में रोड़े अटकाने का आरोप भी लगाया।
उन्होंने कहा कि इन दंगों की शुरुआत राजीव गांधी के दौर से हुई थी, उन्होंने तब बयान दिया था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती हिलती है. मगर आजतक कांग्रेस ने उस बयान से खुद को अलग नहीं किया और माफी भी नहीं मांगी। रविशंकर ने कहा कि एनडीए सरकार ने इस मुद्दे पर एसआईटी बनाई थी उसी के कारण कोर्ट से जल्द फैसला आया है।
इस मामले में पंजाब की सियासत भी गरमा गयी है। अकाली दल ने फैसले का स्वागत करते हुए कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला है। सुखबीर सिंह बादल ने तो इस मामले में सोनिया गांधी के खिलाफ एसआईटी जांच करने की मांग की है।
गौरतलब है कि जिस मामले में सजा सुनाई गयी है दिल्ली पुलिस ने साक्ष्य के अभाव में इसी मामले को 1994 में बंद कर दिया था। लेकिन केंद्र सरकार के एसआईटी गठन करने के फैसले के बाद 2015 में दंगों से संबंधित मामलों को फिर से खोला था। एसआईटी दंगों से जुड़े करीब 60 मामलों की जांच कर रही है जिसमें दो लोगों की हत्या के दोषी यशपाल सिंह को मंगलवार को फांसी की सजा सुनाई जबकि एक अन्य को उम्रकैद का आदेश दिया। दंगा पीडितों ने फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए उम्मीद जताई कि अन्य आरोपियों को भी जल्द ही न्याय के कठघरे में लाया जाएगा।
1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों में तीन हजार 325 लोग मारे गए थे। इस मामले में पहले भी किशोरी नामक एक व्यक्ति को सुनवाई अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी जिसे बाद में उच्चतम न्यायालय ने उम्रकैद में बदल दिया। अब एक बार फिर नए सिरे से जांच और दोषियों को सजा मिलने के बाद पीडितों के लिए उम्मीद की किरण जगी है।
