वैज्ञानिकों ने कैंसर से गंभीर रूप से जूझ रहे एक शख्स के इलाज के लिये पहली बार कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का इस्तेमाल सफलतापूर्वक किया और इससे बीमारी को बढ़ने से पूरी तरह रोक दिया. शोधकर्ताओं के दल ने स्थायी प्रतिक्रिया वाले नतीजे हासिल करने के लिये हर दवा की बिल्कुल सटीक मात्रा की पहचान के लिये सफलतापूर्वक क्यूरेट.एआई नाम की कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रणाली का इस्तेमाल किया जिससे मरीज पूरी तरह सामान्य और सक्रिय जीवनशैली को फिर से शुरू करने में सक्षम हो सका. मेटास्टेटिक कैस्ट्रेशन-रेसिस्टेंट प्रोस्टेट कैंसर (एमसीआरपीसी) के एक मरीज को जेडईएन-3694 और एंजालुटामाइट नाम की दवा के साथ कुछ दूसरी नयी दवाएं मिलाकर दी गईं.
जेडईएन-3964 अभी प्रायोगिक औषधि है. नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के डीन हो ने कहा, ‘‘कैंसर के इलाज में डायनमिक डोजिंग का आमतौर पर इस्तेमाल नहीं होता है. वास्तव में, कैंसर में दवाओं की खुराक में बदलाव आम तौर पर विषाक्तता को घटाने के लिये किया जाता है. ’’ वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कृत्रिम मेधा तंत्र(एएल) विकसित किया है जो सीटी स्कैन में फेफड़े के कैंसर के धब्बों को सटीकता से पहचान लेते हैं जिन्हें कई बार रेडियोलॉजिस्टों को पहचानने में कठिनाई आती है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह एएल तंत्र 95 प्रतिशत तक सटीक है वहीं इंसान की आंखे 65 प्रतिशत तक ही इन मामलों में सटीक आकलन कर पाती हैं. अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ सेन्ट्रल फ्लोरिडा में कार्यरत रोडने लालोंडे ने कहा, ‘‘हमने अपना तंत्र विकसित करने के लिए मस्तिष्क को मॉडल के तौर पर इस्तेमाल किया’’ यह प्रक्रिया उस अल्गोरिदम के ही समान है जिसका इस्तेमाल चेहरा पहचानने वाला सॉफ्टवेयर करता है. यह एक खास पैटर्न का मैच मिलाने के लिए हजारों चेहरों को स्कैन करता है. शोधकर्ताओं ने ट्यूमर की पहचान करने के लिए बनाए गए कम्प्यूटर के सॉफ्टवेयर को एक हजार से ज्यादा सीटी स्कैन दिखाए. कम्प्यूटर को दक्ष बनाने के लिए उन्होंने उसे सीटी स्कैन में नजर आने वाले ऊतकों, तंत्रिकाओं, तथा अन्य संरचनाओं को नजरअंदाज कर फेफड़े के ऊतकों का अध्ययन करना सिखाया.