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देश में शुरू हो गई 5G की तैयारी, ये हैं आपके लिए सबसे जरूरी अपडेट

नई दिल्ली। “देश में जियो नहीं होता तो शायद घर पर बात करना भी मुश्किल होता।” एक प्राइवेट बस में कानपुर से दिल्ली का सफर कर रहे मुकेश कुमार की यह टिप्पणी चौंकाती है। देश का भूगोल टेलीकॉम कंपनियों के समीकरण को भी बदलता है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में एक भी कंपनी ऐसी नहीं है जो सही नेटवर्क और उम्दा इंटरनेट स्पीड की गारंटी देती हो। लेकिन फिर भी आंकड़ों की बाजीगरी में कुछ कंपनियां अव्वल तो कुछ फिसड्डी नजर आती हैं। लुकाछिपी के इस खेल के बीच देश में 5G लाने की तैयारी चल रही हैं। देश की टेलीकॉम कंपनियां जिनका एक पांव कर्ज के दलदल में फसा है वो कैसे 5G के लिए सामर्थ्य जुटा पाएंगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल 2 साल के अंतराल में 4G से 5G में शिफ्ट होना टेलिकॉम कंपनियों की मजबूरी भी है।
देश में 5जी को लेकर हड़बड़ाहट: भारत में 5जी मोबाइल तकनीक का रोडमैप तैयार करने के लिए गठित स्टियरिंग कमेटी ने अगली पीढ़ी की वायरलेस सेवाओं को जल्द रफ्तार देने के लिए दिसंबर तक 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी शुरू करने का सुझाव दिया है। सरकार 5जी सेवाओं की लॉन्चिंग की तैयारी में है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा माना जा रहा है कि 5जी को 2020 के आसपास व्यापारिक तौर पर लांच किया जाएगा।
टेलीकॉम सेक्टर की वर्तमान स्थिति: देश का टेलीकॉम सेक्टर चारों तरफ से मुश्किल से घिरा है और वह फिलहाल देश के सबसे तनावग्रस्त सेक्टर्स में से एक है। टेलीकॉम सेक्टर की वर्तमान स्थिति को आप इन चार बातों से समझ सकते हैं।
जियो ने खत्म की प्रतिस्पर्धा: 5 सितंबर 2016 को जियो ने टेलीकॉम सेक्टर में एंट्री की थी। दो साल के भीतर जियो ने सेक्टर में प्रतिस्पर्धा को लगभग खत्म कर दिया। सस्ते इंटरनेट डेटा की होड़ में जियो ने मुफ्त में इंटरनेट देकर सभी को पटखनी दे दी।
-टेलीकॉम सेक्टर का बैंकों को कर्ज बना रहा है NPA: देश की सरकार ने कंपनियों को महंगे 4G स्पेक्ट्रम बेचे और कंपनियों ने इन्हें कर्ज लेकर खरीदा जिसे वो अब तक नहीं चुका पाई हैं और इनका NPA बनना शुरू हो गया है। एक डेटा के मुताबिक टेलीकॉमसेक्टर पर विभिन्न वित्तीय संस्थाओं और बैंकों का करीब 4.6 लाख करोड़ रुपए बकाया है।
-टेलीकॉम सेक्टर में मोनोपॉली की संभावना तेज: भारतीय टेलीकॉम में जियो जिस तेजी से पांव पसार रहा है उसे देखकर लगता है कि इस बाजार में जल्द ही मोनोपॉली की स्थिति देखने को मिल सकती है। जियो के डर से वोडा और आइडिया एक होने को तैयार हैं, रिलायंस कम्युनिकेशन्स अपना मोबाइल कारोबार बेच चुका है और एयरसेल भी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुकी है। अगर जियो का विस्तार जारी रहा तो जल्द ही आपको देश में सिर्फ एक या दो ही टेलीकॉम कंपनियां सर्विस देती नजर आ सकती हैं।
टेलीकॉम कंपनियों के आरपू में गिरावट: जियो की एंट्री के बाद से ही अन्य टेलीकॉम कंपनियों के एवरेज रेवेन्यू प्रति यूजर (ARPU) में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। यह सेक्टर के लिए एक अच्छा संकेत नहीं है।हमने देश के टेलिकॉम सेक्टर में 5G को लेकर केपीएमजी के पार्टनर जॉयदीप घोष के साथ विस्तार से बात की है। समझिए कैसे हैं देश के टेलीकॉम सेक्टर के हालात।
भारत में 5G के लिए प्रमुख चुनौती?:-भारत की टेलिकॉम कंपनियों के लिए 5G को लेकर सबसे बड़ी चुनौती स्पेक्ट्रम के रिजर्व प्राइज को लेकर है। यह रकम काफी ज्यादा है। 5G के स्पेक्ट्रम की नीलामी दिसंबर से शुरू करने की तैयारी है और इसके लिए सरकार ने 5 लाख करोड़ रुपये का रिजर्व प्राइज आरक्षित किया है। शुरुआती तौर पर 5G के लिए 3,500 मेगाहर्ट्ज बैंड में स्पेक्ट्रम की नीलामी की जानी है। अगर कोई पूरे देश में इस बैंड के लिए स्पेक्ट्रम चाहता है तो उसे 1 लाख 47,600 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। ऐसे में कहा जा सकता है कि पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रही टेलीकॉम कंपनियों को 5जी की खरीद काफी महंगी पड़ेगी।
5G के लिए कितना तैयार है भारत?:-घोष ने बताया बेशक भारत में 5G के लिए तैयारियां तेज हैं, लेकिन अगर इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से देखें तो अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। देश में इसके लिए कंपीटेबल फाइबर केबल बिछानी होंगी, 5जी को सपोर्ट करने वाली डिवाइस लॉन्च करनी होंगी। साथ ही मोबाइल एप्लीकेशन्स को 5जी के लिहाज से सपोर्टिव बनाना होगा।
कौन सी टेलीकॉम कंपनी 5G को खरीदने में फिलहाल सक्षम?:-बीते दिन तक देश की नंबर एक टेलीकॉम कंपनी भारती एयरटेल को पिछले 15 सालों में पहली बार घाटे का सामना करना पड़ा है। वहीं एयरसेल की स्थिति किसी के छिपी नहीं है। वोडा और आइडिया का हाल ही में मर्जर हुआ है लेकिन उन पर भी बैंकों का बड़ा कर्ज है। इस बीच सिर्फ जियो की एकलौती कंपनी है जो कि 5G के भारी भरकम और महंगे स्पेक्ट्रम को खरीदने की स्थिति में दिखाई दे रही है।बैंक बरतेंगे सावधानी: इससे पहले सरकार ने महंगे 4G स्पेक्ट्रम खरीदे थे, जिसे टेलीकॉम कंपनियों ने कर्ज लेकर खरीदा। अब टेलीकॉम कंपनियों का यही कर्ज एनपीए की शक्ल लेता जा रहा है। इसे देखते हुए अब बैंक टेलीकॉम कंपनियों को 5G के लिए कर्ज लेने में थोड़ा सावधानी बरत सकते हैं।घोष ने यह भी कहा कि अगर मौजूदा परिदृश्य को देखें तो महंगे स्पेक्ट्रम और बनियादी ढांचे की कमी के कारण शायद ही टेलीकॉम कंपनियां शुरुआती तौर पर 5G के लिए दिलचस्पी दिखाएंगी।

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