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मुंबई हमले के समय भारत में ही थे इमरान के मंत्रिमंडल में शामिल विदेश मंत्री कुरैशी

नई दिल्‍ली। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने मंत्रियों का एलान कर दिया है। उनके मंत्रिमंडल में 21 सदस्य होंगे। इनमें 16 लोग मंत्री और अन्य प्रधानमंत्री के सलाहकार होंगे। इनमें कम-से-कम 12 मंत्री पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ के शासनकाल में अहम पदों पर रह चुके हैं। मुशर्रफ के प्रवक्ता, उनके वकील और मंत्री रह चुके लोगों पर इमरान ने भी भरोसा जताया है। इन्‍हें सोमवार को राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाए जाने की उम्मीद है। लेकिन इन सभी के बीच जिस नाम की सबसे अधिक चर्चा है उनका नाम शाह महमूद कुरैशी है, जिन्‍हें पाकिस्‍तान का नया विदेश मंत्री बनाया जाना है।
पहले भी रह चुके हैं विदेश मंत्री:-आपको बता दें कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के उपाध्यक्ष कुरैशी शाह मेहमूद कुरैशी का नाम भारत के लिए नया नहीं है। इसके पहले भी वह वर्ष 2008-2011 तक पाकिस्तान के विदेश मंत्री रह चुके हैं और इस दौरान उन्होंने न सिर्फ दोनों देशों के बीच शुरू हुई समग्र वार्ता में पाकिस्तान की अगुवाई की थी बल्कि तत्कालीन विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के साथ कई द्विपक्षीय वार्ताएं भी कीं थीं। पीपीपी के तत्कालीन मुखिया आसिफ अली जरदारी से मनमुटाव होने के बाद उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। तब से वह इमरान खान से जुड़े हुए थे और उन्हें विदेश मामलों पर सुझाव दे रहे थे।
पहले से तय था कुरैशी का पद:-पाकिस्तान के आम चुनाव में कुरैशी और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ को मिली जीत के बाद से ही उनका विदेश मंत्री बनाया जाना लगभग तय माना जा रहा था। लेकिन वह भारत से संबंध सुधारने में कितने कारगर साबित होंगे ये तो वक्‍त ही बताएगा। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि अभी तक भारत से पाक सरकार के संबंध कैसे होंगे इसका फैसला वहां की सरकार नहीं बल्कि वहां की आर्मी करती आई है। यूं भी जानकार इस बात से इंकार नहीं करते हैं कि इमरान को सत्ता तक पहुंचाने में सेना का सबसे अहम रोल रहा है। विदेश मामलों के जानकार कमर आगा इस बात को पहले भी कह चुके हैं।
सेना मजबूत स्थिति में;-दैनिक जागरण से बात करते हुए उन्‍होंने कहा कि सेना पाकिस्‍तान में हमेशा से ही मजबूत स्थिति में रही है। यही वजह है कि वहां पर कोई भी सरकार सेना का हुक्‍म नहीं टालती है। मौजूदा हालातों की बात करें तो सेना अपने हाथों में सीधेतौर पर सत्ता हासिल करने की पक्षधर नहीं है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि इससे देश और उसकी किरकिरी होती है। वैसे भी सैन्‍य सत्ता को आज दुनिया में मान्‍यता मिलना मुश्किल है। यही वजह है कि सेना ने इमरान को इसके लिए चुना है। जबतक वह सेना का कहा मानेंगे तब तक सत्ता पर बने रहेंगे।
मिला-जुला कार्यकाल;-जहां तक बतौर विदेश मंत्री कुरैशी का पहले के कार्यकाल का सवाल है तो वह काफी मिला-जुला रहा था। वर्ष 2008 में जिस दिन मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था उस दिन कुरैशी भारत में ही थे। इसका जिक्र पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी आत्मकथा में भी किया है। मुखर्जी तब भारत के विदेश मंत्री थे। उन्होंने लिखा है कि जब उन्हें पता चला कि कुरैशी नई दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं तो उन्होंने तत्काल उनसे संपर्क साधा और कहा कि वह बगैर किसी देरी के पाकिस्तान लौट जाएं। यही नहीं मुखर्जी ने उनसे यह भी कहा कि इसके लिए वह अपना आधिकारिक विमान भी कुरैशी को देने को तैयार हैं। कुरैशी ने उनकी बात मानी और कुछ ही घंटों में वह पाकिस्तान लौट गये।
वादों पर नहीं किया काम:-कुरैशी ने बाद में मुंबई हमले को लेकर अपना दुख भी जताया और कई बार भारत को जांच में मदद करने का आश्वासन भी दिया। लेकिन असलियत में पाकिस्तान की तरफ से भारत को मुंबई हमले के दोषियों को पकड़ने में कोई मदद नहीं मिली। बीती सरकारों ने इस बाबत कभी भी ठोस कदम नहीं उठाए हैं। कुरैशी का एक दूसरा पहलू भी है। वर्ष 2010 में भारतीय विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के साथ इस्लामाबाद में संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में बहुत ही आपत्तिजनक व्यवहार किया था। यह प्रेस कांफ्रेंस दोनो देशों के बीच हुई समग्र वार्ता के बाद आयोजित हुई थी। लेकिन प्रेस कांफ्रेंस में सार्वजनिक तौर पर कुरैशी ने भारतीय विदेश मंत्री के अधिकार को लेकर सवाल उठा दिए।
कुरैशी ने की थी गलत टिप्‍पणी:-उन्होंने कहा कि भारतीय विदेश मंत्री ने कई बार वार्ता को बीच में रोक कर नई दिल्ली बात की, उन्हें पूरे अधिकार के साथ वार्ता के लिए नहीं भेजा गया था। सार्वजनिक तौर पर उनकी इस तरह की टिप्पणी को न सिर्फ बहुत असभ्य माना गया बल्कि तब भारत के सभी राजनीतिक दलों ने इसकी जोरदार भ‌र्त्सना की। पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने उन्हें विदेश मंत्रालय के दूसरे दर्जे के सचिव के पद के योग्य भी नहीं होने की बात कही। हालांकि कुछ ही दिनों में यह बात साफ हो जाएगी कि पाकिस्‍तान की नई सरकार भारत से संबंध सुधारने के लिए कितनी गंभीर है। इसके अलावा सार्क सम्‍मेलन को लेकर भी उसकी छवि सभी के सामने आ जाएगी। वर्ष 2016 में हुए उड़ी हमले की वजह से भारत ने पाकिस्‍तान में होने वाले सार्क सम्‍मेलन का बहिष्‍कार किया था। इसके बाद पाकिस्‍तान को यह सम्‍मेलन रद करना पड़ा था। हालांकि यह सम्‍मेलन अब भी हो सकेगा इसको लेकर बड़ा सवालिया निशान अब भी मौजूद है।
पाकिस्‍तान के दूसरे अहम मंत्री:-परवेज खट्टक को रक्षा मंत्री बनाया गया है। इससे पहले 2013-18 तक वे खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल मुहम्मद उमर के बेटे असद उमर नई सरकार में वित्त मंत्री होंगे। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय मुहम्मद उमर पाकिस्तानी सेना में शामिल थे। ‘द न्यूज’ की रिपोर्ट के मुताबिक, खट्टक और कुरैशी समेत पांच मंत्री इससे पहले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं। मुशर्रफ के समय रेल मंत्री रह चुके शेख राशिद को वही पद मिला है। इमरान ने अपनी सरकार में तीन महिलाओं-शिरीन मजारी, जुबैदा जलाल और फहमिदा मिर्जा को भी शामिल किया है।

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