एससी-एसटी समुदाय के लोगों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के कानून को फिर से पुरानी शक्ल में लागू किया जाएगा. इससे जुड़ा एक विधेयक लोकसभा से पारित हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों इसमें कुछ बदलाव किए थे। जिसके बाद देशभर में इसका व्यापक विरोध देखने को मिला था। इस बिल में न सिर्फ पिछले कड़े प्रावधानों को वापस जोड़ा गया है बल्कि और ज्यादा सख्त नियमों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के खिलाफ होनेवाले अत्याचारों को रोकने के लिए बना कानून पहले की तरह ही सख्त रहेगा। इस विधेयक के जरिए न सिर्फ इस मामले में पहले से बना कानून बहाल होगा बल्कि इसे और सख्त बनाया जा सकेगा। केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सदन में हुई चर्चा के दौरान कहा कि हालांकि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, लेकिन न्याय मिलने में देरी ना हो इसलिए विधेयक के जरिए कानून में बदलाव किया जा रहा है। विधेयक के जरिए कानून के पुराने प्रावधानों को बहाल किया जा रहा है, जिसके मुताबिक
-किसी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर रजिस्टर करने के लिए प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं होगी।
-ऐसे व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले जांच अधिकारी को किसी अनुमोदन की जरूरत नहीं होगी।
-जिस व्यक्ति पर एससी-एसटी कानून का अभियोग लगा हो तो उस पर कोई और प्रक्रिया कानून लागू नहीं होगा।
-आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत भी हासिल नहीं हो सकेगी।
चर्चा के दौरान तमाम विपक्षी दलों ने विधेयक का समर्थन किया और सरकार को कुछ सुझाव भी दिए।
दरअसल एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में निर्देश जारी किए थे। उसके बाद दलित संगठनों ने सरकार से कानून को फिर से बहाल करने की मांग की थी, जिसके बाद सरकार ये कानून लेकर आई है। इस कानून में जो बदलाव किए गए हैं उसके मुताबिक पहले एससी-एसटी कानून के दायरे में 22 श्रेणी के अपराध आते थे, लेकिन अब इसमें 25 अन्य अपराधों को शामिल करके कानून काफी सख्त बनाया जा रहा है।